सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम-वीवीपीएटी के सौ फ़ीसदी मिलान जुड़ी तमाम याचिका की ख़ारिज

  • [By: National Desk || 2024-04-27 17:17 IST
सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम-वीवीपीएटी के सौ फ़ीसदी मिलान जुड़ी तमाम याचिका की ख़ारिज

नई दिल्ली। ईवीएम-वीवीपीएटी के सौ फ़ीसदी मिलान से सम्बंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ गया है। अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि ईवीएम में सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी होने पर सिंबल लोडिंग यूनिट को सील कर दिया जाना चाहिए और और उन्हें कम से कम 45 दिनों के लिए सहेज कर रखा जाना चाहिए। ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज की गई तमाम याचिकाओं में पेपर बैलेट से मतदान, सौ फीसदी ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन और वीवीपैट पर्चियों को भौतिक रूप से जमा करने की याचिकाएं शामिल थीं। 
जस्टिस दीपांकर दत्ता ने फैसला सुनाते समय कहा कि किसी प्रणाली पर आंख मूंदकर संदेह करना सही नहीं है। इसके लिए सार्थक आलोचना की आवश्यकता है। सिस्टम की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्य और कारण द्वारा निर्देशित एक महत्वपूर्ण लेकिन रचनात्मक दृष्टिकोण का पालन किया जाना चाहिए। 

रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने इस मामले में अलग-अलग लेकिन एक सहमति वाले फैसले लिखे। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस खन्ना ने कहा:

"हमने प्रोटोकॉल, तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है। इसके बाद हमने एकमत से फैसला दिया है।"

अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने दो बड़े निर्देश भी जारी दिए। 

  1. अपने पहले निर्देश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी होने के बाद सिंबल लोडिंग यूनिट (एसएलयू) को सील कर दिया जाना चाहिए और उन्हें कम से कम 45 दिनों के लिए सहेज कर रखा जाना चाहिए। 
  2. इसके अलावा दूसरे निर्देश में कोर्ट ने कहा कि प्रति विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र प्रति संसदीय क्षेत्र में घोषणा के बाद ईवीएम के निर्माताओं के इंजीनियरों की एक टीम द्वारा जांच और सत्यापन किया जाएगा। उम्मीदवार 2 और 3 के लिखित अनुरोध पर परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर ये जांच होनी चाहिए। वास्तविक लागत इसका अनुरोध करने वाले उम्मीदवार द्वारा वहन की जाएगी। ईवीएम से छेड़छाड़ पाए जाने पर खर्चा वापस किया जाएगा। 

ग़ौरतलब है कि इस मामले में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अभय भाकचंद छाजेड़ और अरुण कुमार अग्रवाल द्वारा रिट याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि सभी वीवीपीएटी गणना से चुनावी प्रक्रिया में नागरिकों का विश्वास बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी।  इसके लिए अंतिम परिणामों में कुछ दिन इंतजार करना एक छोटी-सी कीमत है। 

वीवीपीएटी मशीनें मतदाताओं को एक कागज़ की पर्ची देखने देती हैं जो सात सेकेंड की अवधि के लिए मशीन के भीतर प्रिंट होती है, इसमें जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है। इसके बाद यह कागज मशीन के भीतर एक सीलबंद बॉक्स में चला जाता है। 

ग़ौरतलब है कि 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम की आलोचना और मतपत्रों को वापस लाने की मांग की निंदा करते हुए कहा था कि भारत में चुनावी प्रक्रिया एक ‘बहुत बड़ा काम’ है और इस ‘सिस्टम को गिराने’ की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। 

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