एक देश-एक चुनाव को कैबिनेट की मंजूरी
- [By: PK Verma || 2024-09-18 18:29 IST
नई दिल्ली। आज केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री मंडल की बैठक में एक देश एक चुनाव की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसे कैबिनेट ने अपनी मंजूरी भी प्रदान कर दी। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय सरकार आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में इसे प्रस्तुत कर सकती है। ग़ौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा से पहले मार्च 2024 में यह रिपोर्ट पेश की थी। आज मोदी कैबिनेट के सामने इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करना विधि मंत्रालय के सौ दिवसीय एजेंडे का एक अहम् हिस्सा था। गोरतलब हैं कि एक देश-एक चुनाव उच्च स्तरीय समिति ने पहले चरण के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। इसके सौ दिनों के भीतर नगर निगम और नगर पालिका के स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने की बात कही गई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' पर कोविंद समिति की रिपोर्ट को अपनी मंजूरी दे दी हैं। कोविंद समिति को एक साथ चुनाव कराने के लिए व्यापक समर्थन मिला है। मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को मंजूरी दी है। कोविंद समिति की सिफारिशों पर पूरे भारत में विभिन्न मंचों पर चर्चा की जाएगी। बड़ी संख्या में दलों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है। हम अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने का प्रयास करेंगे।
— Narendra Modi (@narendramodi) September 18, 2024
लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने पहले चरण के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। इसके सौ दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने की बात कही गई है। समिति ने सिफारिशों के क्रियान्वयन पर विचार करने के लिए एक 'कार्यान्वयन समूह' के गठन का भी प्रस्ताव रखा है। समिति के अनुसार एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों की बचत होगी। विकास और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा मिलेगा। लोकतांत्रिक ढांचे की नींव मजबूत होगी।
एक मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से चुनाव आयोग की ओर से एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की भी सिफारिश की थी। फिलहाल भारत का चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों को ही देखता है। नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोगों की ओर से कराए जाते हैं। बताया गया कि समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है। जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं से समर्थन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, इनके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की जरूरत होगी, जिन्हें संसद से पारित कराना होगा। एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित परिवर्तनों को कम से कम आधे राज्यों से समर्थन की जरूरत होगी। इसके अलावा विधि आयोग भी जल्द ही एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट लेकर आने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके पूरजोर सथर्मक रहे हैं। सूत्रों के अनुसार विधि आयोग सरकार के सभी तीन स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं-पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है। त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार यानी यूनिटी गवर्नमेंट के प्रावधान की सिफारिश भी कर सकता है।
कैसे लागू होगा एक देश एक चुनाव: अब सबसे बड़ा प्रश्न है कि एक देश एक चुनाव कैसे लागू होगा। दरअसल केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'एक देश, एक चुनाव' को लेकर बनी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को बुधवार को मंजूरी दे दी। इस मसले पर चुनाव आयोग ने पहले कहा है कि वह एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों को करा सकता है। इसमें बहुत सारे रसद और व्यवधान शामिल हैं। लेकिन यह कुछ ऐसा है जो विधायिकाओं को तय करना है।
क्या है एक देश एक चुनाव का प्रस्ताव: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर एक देश एक चुनाव का जिक्र किया था। तब से अब तक कई मौकों पर भाजपा की ओर एक देश एक चुनाव की बात की जाती रही है। ये विचार इस पर आधारित है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। अभी लोकसभा यानी आम चुनाव और विधानसभा चुनाव पांच साल के अंतराल में होते हैं। इसकी व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई है। अलग-अलग राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल अलग-अलग समय पर पूरा होता है, उसी के हिसाब से उस राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं। हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम जैसे राज्य शामिल हैं। वहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम जैसे राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले हुए तो लोकसभा चुनाव खत्म होने के छह महीने के भीतर हरियाणा, जम्मू कश्मीर में चुनाव हो रहे हैं। जल्द ही महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव तारीखों का एलान हो सकता है।
एक देश एक चुनाव की बहस की वजह: दरअसल, एक देश एक चुनाव की बहस 2018 में विधि आयोग के एक मसौदा रिपोर्ट के बाद शुरू हुई थी। उस रिपोर्ट में आर्थिक वजहों को गिनाया गया था। विधि आयोग का कहना था कि 2014 में लोकसभा चुनावों का खर्च और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान रहा है। वहीं, साथ-साथ चुनाव होने पर यह खर्च 50-50 के अनुपात में बंट जाएगा। मोदी सरकार को सौंपी अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में विधि आयोग का कहना था कि साल 1967 के बाद एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया बाधित हो गई। विधि आयोग का कहना था कि आजादी के शुरुआती सालों में देश में एक पार्टी का राज था और क्षेत्रीय दल कमजोर थे। धीरे-धीरे अन्य दल मजबूत हुए कई राज्यों की सत्ता में आए। वहीं, संविधान की धारा 356 के प्रयोग ने भी एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को बाधित किया। अब देश की राजनीति में बदलाव आ चुका है। कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की संख्या काफी बढ़ी है। वहीं, कई राज्यों में इनकी सरकार भी है।
लोकसभा-विधानसभा चुनावों का खर्च: विधि आयोग के मुताबिक 2014 लोकसभा चुनावों में कुल 35 अरब 86 करोड़ 27 लाख रुपए खर्च हुए थे। अकेले हरियाणा में इस पर 29 करोड़ खर्च हुए। राज्य में जब छह महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए तो इन पर 33 करोड़ 72 लाख खर्च आया। इसी तरह झारखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान कुल 89 करोड़ 47 लाख रुपए का खर्च आया। चंद महीने बाद राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में 86 करोड़ खर्च हुए। मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में एक अरब 31 करोड़ का खर्च आया था। तीन महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश मे कुल एक अरब 99 करोड़ का खर्च हुए। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि 2019 में एक साथ चुनाव कराते हैं, तो लगभग 10 लाख पोलिंग बूथ बनाने होंगे और लगभग 13 लाख बैलेट यूनिट्स, 9 लाख 40 हजार कंट्रोल यूनिट्स और तकरीबन 12 लाख 30 हजार वीवीपैट मशीनों की जरूरत होगी। एक इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन की कीमत 33 हजार 200 रुपए पड़ती है। चुनाव आयोग का कहना था कि साथ चुनाव होते हैं तो अकेले ईवीएम पर ही 4 हजार 555 करोड़ रुपए खर्च होंगे। दूसरी और एक ईवीएम की अधिकतम उम्र 15 साल ही होती है। तब आयोग ने कहा था कि ईवीएम के आज की कीमत के हिसाब से 2024 में दोबारा एक साथ चुनाव कराने पर 1751 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। जबकि 2019 में यह बढ़ कर 2018 करोड़ रुपए हो जाएगा। वहीं 2034 में साथ चुनाव कराने पर नई ईवीएम खरीदने में 14 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे।
पहले कब-कब एक साथ चुनाव हुए: 15 अगस्त 1947 के बाद देश में पहली बार 1951-52 में चुनाव हुए। तब लोकसभा के साथ ही सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी संपन्न हुए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए गए। 1968-69 के बाद यह सिलसिला टूट गया, क्योंकि कुछ विधानसभाएं विभिन्न कारणों से भंग कर दी गई थीं।
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