15 दिन में दूसरी बार मोदी सरकार झुकी, लिटरल एंट्री पर रोक

  • [By: PK Verma || 2024-08-20 18:19 IST
15 दिन में दूसरी बार मोदी सरकार झुकी, लिटरल एंट्री पर रोक

नई दिल्ली। केंद्र में तीसरी बार बनी मोदी सरकार इस बार पहले की तरह मजबूत और एक पक्षीय फैसला लेने वाली सरकार नहीं है। पिछले 15 दिनों में 2 बार मोदी सरकार को मजबूत विपक्ष के सामने झुकना पड़ा। दरअसल मोदी सरकार ने विवादों के बीच Literal Entry पर रोक लगा दी है। मंगलवार को केंद्रीय कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष प्रीति सूदन को पत्र लिखकर Literal Entry का विज्ञापन रद्द करने को कहा ताकि कमजोर वर्गों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। ग़ौरतलब है कि संघ लोक सेवा आयोग ने 17 अगस्त 2024 को Literal Entry के जरिए विभिन्न विभागों में 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उपसचिवों की सीधी भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। पिछले 15 दिनों के अंदर ऐसा दूसरी बार हुआ है जब नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं। इससे पहले 8 अगस्त को मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन बिल लोकसभा से वापस ले लिया था और उसे जेपीसी के पास भेज दिया था। अब मोदी सरकार ने मजबूत विपक्ष के भारी विरोध को देखते हुए Literal Entry पर रोक लगा दी है।

क्या होता है लिटरल एंट्री: सरकारी विभागों में (निजी क्षेत्रों के विशेषज्ञों सहित) विभिन्न विशेषज्ञों की नियुक्ति को Literal Entry कहा जाता है। यूपीएससी Literal Entry के जरिए सीधे उन पदों पर उम्मीदवारों की नियुक्ति करता है, जिन पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अनुभवी अधिकारियों की तैनाती होती है। इस व्यवस्था के तहत निजी क्षेत्रों के अलग-अलग पेशे के विशेषज्ञों को विभिन्न मंत्रालयों व विभागों में सीधे संयुक्त सचिव और निदेशक व उपसचिव के पद पर नियुक्त किया जाता है।

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मोदी सरकार में कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने अपने पत्र में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण "हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है। चूंकि इन पदों को विशिष्ट मानते हुए एकल-कैडर पद के रूप में नामित किया गया है, इसलिए इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के माननीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, इस कदम की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी का दृढ़ विश्वास हैकि लिटरल एंट्री की प्रक्रिया को संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।"

दरअसल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी समेत कई अन्य विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के Literal Entry के फैसले की कड़ी आलोचना की थी और इसका भारी विरोध किया था। उनका आरोप था कि Literal Entry के जरिए उच्च पदों पर सीधी भर्ती कर सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण अधिकारों का हनन कर रही है। जब विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा तो केंद्रीय कानून मंत्री ने तर्क दिया कि यह कांग्रेस के शासन काल में ही शुरू हुआ है और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गाँधी और राजीव गांधी की सरकार तक ने इसके जरिए सीधी नियुक्तियां की हैं।

विपक्ष ही नहीं सहयोगी दलों का भी विरोध: लेकिन बात सिर्फ़ विपक्षी दलों का ही नहीं हैं। मोदी सरकार की इस योजना की आलोचना और विरोध सिर्फ विपक्ष ने किया है वरन एक दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी Literal Entry के जरिए सरकारी पदों पर नियुक्तियों के किसी भी कदम की आलोचना करते हुए कहा कि वह केंद्र के समक्ष यह मुद्दा उठाएंगे। चिराग पासवान ने कहा था, "किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है। निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है। और अगर सरकारी पदों पर भी इसे लागू नहीं किया जाता है... तो यह चिंता की बात होगी।"

जेडीयू का भी विरोधी संकेत: चिराग पासवान के अलावा बिहार से ही मोदी सरकार की दूसरी सहयोगी पार्टी नीतीश कुमार की जेडीयू ने भी Literal Entry का विरोध किया था। जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा, "वे Literal Entry के विज्ञापन का दुरुपयोग करेंगे। इससे राहुल गांधी पिछड़ों के चैंपियन बन जाएंगे। मोदी सरकार ऐसे फैसलों के जरिए विपक्ष को मुद्दा दे रही है, इसलिए इसे वापस ले लेना चाहिए।"

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