रामदेव पर सुप्रीम कोर्ट का चला चाबुक, अब देना होगा योग से कमाई पर टैक्स 

  • [By: Meerut Desk || 2024-04-22 16:22 IST
रामदेव पर सुप्रीम कोर्ट का चला चाबुक, अब देना होगा योग से कमाई पर टैक्स 

नई दिल्ली। कथित योग गुरु रामदेव पर जब से सुप्रीम कोर्ट की नजरे टेडी हो गई है रामदेव की नींद उड़ गई है। झूठे विज्ञापन मामलों ऐसा रामदेव और उसके साथी बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट को शुरू में हलके में लिया। शायद सत्ता से नजदीकी के चलते रामदेव सुप्रीम कोर्ट को कुछ नहीं समझ रहा था। लेकिन जब से दिल्ली के आका ने रामदेव से दूरी बना ली तब से रामदेव के बुरे दिन शुरू हो गए है। सुप्रीम कोर्ट में खुद उपस्थित होकर बार बार माफ़ी मांगने पर भी रामदेव को माफ़ी नहीं मिल रही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को एक और झटका दे दिया है। 

दरअसल रामदेव के योग शिविरों के आयोजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार, अब पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को शिविरों के आयोजन के लिए 'सर्विस टैक्स' देना होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब रामदेव और पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को अब योग शिविर का आयोजन कराने के लिए सरकार को अब 'सर्विस टैक्स' यानी 'सेवा शुल्क' चुकाना होगा। 

दरअसल 19 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय एम ओक और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने इस मामले कस्टम, एक्साइज, सर्विस टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल (CESTAT) के फैसले को बरकरार रखा है। समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार ट्राइब्यूनल ने पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को आवासीय और गैर-आवासीय दोनों योग शिविरों के आयोजन के लिए सर्विस टैक्स का भुगतान करना जरूरी बताया गया था।  लेकिन टैक्स देने से बचने के लिए पंतजलि ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की थी। 

ग़ौरतलब है कि पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट रामदेव के योग शिविरों में शामिल होने के लिए लोगों से मोटी रक़म एंट्री फीस के रूप में लेती है। जस्टिस ओक और जस्टिस भुइयां की पीठ ने अपने फैसले में CESTAT के फैसले को सही बताते हुए कहा:

"एंट्री फीस लेने के बाद तो शिविरों में योग एक सर्विस है। हमें ट्राइब्यूनल के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। लिहाजा पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट की अपील खारिज की जाती है। 

इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने CESTAT की इलाहाबाद पीठ के 5 अक्टूबर 2023 के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। 

सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क, मेरठ रेंज के आयुक्त ने अक्टूबर 2006 से मार्च 2011 के दौरान लगाए गए ऐसे शिविरों के लिए जुर्माना और ब्याज समेत लगभग 4.5 करोड़ रुपये अदा करने को कहा था। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पतंजलि ट्रस्ट ने मेरठ के आयुक्त के इस आदेश को चुनौती देने के लिए CESTAT से संपर्क किया था। उक्त मामले की सुनवाई में CESTAT ने माना था कि पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट की तरफ से आयोजित योग शिविर में शामिल होने के लिए फीस देनी होती है। इसलिए ये "स्वास्थ्य और फिटनेस सेवा" की कैटेगरी में आता है। ऐसी सेवाओं पर सर्विस टैक्स लगता है।  इस मामले में ट्राइब्यूनल ने कहा:

"ट्रस्ट कई आवासीय और गैर-आवासीय शिविरों में योग ट्रेनिंग देने में लगा हुआ है। इसके लिए प्रतिभागियों से दान के तौर पर फीस ली गई। हालांकि ये राशि दान के रूप में इकठ्ठा की गई थी। लेकिन असल में ये तमाम सेवाओं के लिए ली गई फीस है।"

CESTAT के सामने पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट ने दलील दी थी कि  "स्वास्थ्य और फिटनेस सेवा" टैक्स योग्य नहीं है। क्योंकि पीठ मेडिकल ट्रीटमेंट के उद्देश्य से नहीं बल्कि शारीरिक फिटनेस के लिए योग का विस्तार करने में लगी है। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट ने ये भी कहा कि शिविरों में प्रतिभागियों से उन्हें जो भी मिला वो स्वैच्छिक दान था। पीठ द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के बदले में इसे नहीं स्वीकार किया गया था। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट के इस तर्क पर CETSAT ने कहा, ये बात बिल्कुल साफ है कि ये राशि कुछ और नहीं बल्कि स्वास्थ्य और फिटनेस सेवाओं के तहत लगने वाले टैक्स से बचने का प्रावधान था।

इस पर पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट की अपील को खारिज करते हुए, CETSAT ने वित्त अधिनियम, 1994 में "स्वास्थ्य और फिटनेस सेवा" की परिभाषा को समझाया।  जिसके मुताबिक सोना, टर्किश और स्टीम बाथ, सोलारियम, स्पा, स्लिमिंग सैलून, जिम, योगा, मेडिटेशन, मसाज को स्वास्थ्य और फिटनेस सेवा में शामिल किया गया है। 

यानि रामदेव योग शिविर में आने वाले लोगों से तो एंट्री फीस के नाम पर मोटी फ़ीस वसूलता था लेकिन सरकार को कोई टैक्स नहीं देना चाहता था। अभी तक तो रामदेव ने यही किया लेकिन अब ऐसा  नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद अब रामदेव को योग शिविर में लागू एंट्री फीस पर जीएसटी देना ही होगा। 

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