ये तुम्हारे होंठ हैं या ग़ुलाब की पंखुड़ी दो: डॉ पी के वर्मा 

  • [By: Meerut Desk || 2024-06-19 13:59 IST
ये तुम्हारे होंठ हैं या ग़ुलाब की पंखुड़ी दो: डॉ पी के वर्मा 

ये तुम्हारे होंठ हैं या ग़ुलाब की पंखुड़ी दो। 
कंपकपाते ही रह जाते है आज तो इन्हें कुछ कहने दो। 

ये तुम्हारी आंखें है या जाम के प्याले दो। 
बिना पिलाये ही रह जाते है, आज तो इन्हें छलकने दो। 

ये तुम्हारी जुल्फ़ें हैं, या काळा घनघोर बादल दो। 
माथे पर बिखरकर रह जाते हैं, आज तो इन्हें लहराने दो। 

ये तुम्हारे कान है, या कमल के फूल दो। 
जुल्फ़ों में ही छिपे रह जाते है, आज तो इनपर झुमकी सजने दो। 

ये तुम्हारे गाल है या गोल लाल टमाटर दो। 
मुस्कुरा कर ही रह जाते है, आज तो इन्हें शरमाने दो। 

-डॉ पीके वर्मा 

07/12/2012

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