टूटे पत्ते (कविता)

  • [By: PK Verma || 2022-07-04 16:23 IST
टूटे पत्ते (कविता)
टूटे पत्ते (कविताएं)
 
पीतवर्णी पंखुरी पर 
मन को सुकून देने वाले इन रजनीगंधा के फूलों पर 
क्यों न रीझूं और रिझाऊं 
क्या चाँद चमकते नहीं देखा 
क्या फूल खिलते नहीं देखा 
क्या परी को जमीं पर नहीं देखा,
आओ, मैं दिखाऊं।।
 
एक हुस्नपरी 
मोतियों में जड़ी 
बसंती परिधान  लिपटी 
जुल्फ़ों को माथे पर लहरायें 
इंतज़ार की शिकन माथे पर लिए साँझ सकारे
राधा जैसे बृज की गौरी   
चोरी-चोरी श्याम निहारे। ।
 
ये तुम्हारें होंठ हैं 
या गुलाब की पंखुड़ियां दो,
कंपकपाते ही रह जाते हैं 
आज तो इन्हें कुछ कहने दो। ।
 
चाँद और सूरज का मिलन हो नहीं सकता 
पूरब और पश्चिम का मिलन हो नहीं सकता,
हमारा तुम्हारा मिलना भी नामुमकिन ही हैं 
क्योंकि धरती और आकाश का मिलन हो नहीं सकता। ।
 
मुहोब्बत का मोहताज़ हमेशा रहा मैं 
साग़र था सामने फिर भी प्यासा रहा मैं,
एक दिन मजबूत किया दिल को इकरार-ए-मुहोब्बत के लिए    
अपने दिल के टूटे टुकड़ों को भी चुनने वाला रहा मैं। ।
 
-डॉ. पी. के. वर्मा 

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