कैफियत हर एक इंसान की नजर आती है मुझे (कविता)
- [By: PK Verma || 2022-11-07 10:16 IST
कैफियत
कैफियत हर एक इंसान की नजर आती है मुझे,
फितरत हर एक इंसान की नज़र आती है मुझे।
तेरे चेहरे से तेरे मन को पढ़ लेता हूं,
हर मूरत में तेरी सूरत नज़र आती है मुझे।।
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— DR PK VERMA (@drpkverma) November 7, 2022
महफूज समझता हूं खुद तो कुदरत की बाहों में,
बिना मंज़िल को जाने, निकल पड़ा हूं इन राहों में।
हौसला बहुत है मुझमें कि आसमां को चीर दू, मैं,
कि कोई तो मुझे भी बसा ले अपनी नार्गिसी आंखों में।।
तड़फता छोड़ गए तुम मुझे इस कामजर्फ दुनियां में, अकेले,
सिसकता रहता हु रातभर इस दुनिया में, अकेले।
कि मुझे अब चैन नहीं, आराम नही है पलभर का,
मैं इस रात से उस भोर तक भटक रहा हूं अकेले।।
ये कैसी कैफियत है मेरी, कि समझ नही पाता हूं मैं,
इन उलझनों से बाहर नहीं निकल पाता हूं मैं।
कोशिश बाखूब की कि याद ना करूं तुझे,
तुझे भूलकर भी तुझी में समाया रहता हूं मैं।
डॉ पीके वर्मा
(अंग्रेजी साहित्यकार एवं पत्रकार)
05/11/2022
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