वो पुराना कोट (काव्य): डॉ पीके वर्मा 

  • [By: Career Desk || 2024-12-02 14:01 IST
वो पुराना कोट (काव्य): डॉ पीके वर्मा 

अरसो बाद और बरसों बाद 
आज फिर वो पुराना कोट 
अलमारी से निकाला 
उस पर लगा 
एक लंबा काला बाल देखा 
अचानक फिर मुझे 
तेरी ज़ुल्फ़ो का मेरे कंधों पर 
बिखराना याद आया 

याद आया वो लम्हा,
जब तू मेरे सीने से चिपट जाती थीं 
मेरी बाहों में कसकर सिमट जाती थी 
तेरी गर्म सांसें मेरी सांसों से टकराती थीं 
तेरे गर्म होंठों का स्पर्श 
मुझमें नई ताज़गी भर देता था। 
और मैं तुझे ज़ोर से अपने आगोश में भर लेता था। 


तेरे बदन की मस्तानी गंध में 
मैं जन्नत की सैर कर लेता था। 
तेरे सीने का मेरे सीने से टकराना 
तुझे चूमते हुए दोनों जहां को भुला देना 
तेरी घनेरी जुल्फ़ों का 
मेरे कंधों पर बिखर जाना 
तेरी शरारती उँगलियों का मेरे बालों में फिराना 
कैसे भूलूंगा मैं 
वो तेरा 'खुलकर' मुझ में समा जाना। 
सिर्फ तू बस तू, तेरे बाद कोई और नहीं। 
तेरा प्यार, तेरा चुंबन, तेरा अहसास 
तेरे सिवा कोई और नहीं। 
तेरा मुहोब्बत, तेरा चुंबन, तेरा अहसास 
तेरे सिवा कोई और नहीं 
तेरा प्यार, तेरा दुलार 
तेरा समर्पण, तेरा त्याग 
कैसे भूलूंगा मैं --
नहीं शायद कभी नहीं। 

- डॉ पीके वर्मा 


(17/11/2012)    
 

SEARCH

RELATED TOPICS