वो पुराना कोट: डॉ पीके वर्मा 

  • [By: Meerut Desk || 2024-06-19 15:32 IST
वो पुराना कोट: डॉ पीके वर्मा 

वो पुराना कोट 

बरसों बाद 
आज फिर वो पुराना कोट 
अलमारी से निकाला 
उस पर लगा 
एक लंबा काला बाल 
देख याद आया 
वो हर पल 
वो हर लम्हा 
अचानक मुझे याद आया 
तेरी जुल्फ़ों मेरे शानों पर बिखर जाना 
फिर याद आया वो पल 
वो लम्हा 
जब तू मेरे सीने से चिपट जाती थी 
मेरी बाँहों में जोर से सिमट जाती थी 
तेरी गर्म सांसे मेरी सांसों से टकराती थी 

एशियन एक्सप्रेस साहित्य में यह भी पढ़े: ये तुम्हारे होंठ हैं या ग़ुलाब की पंखुड़ी दो: डॉ पी के वर्मा

तेरे लरजते होंठों का स्पर्श 
मुझमे भर देता था, 
एक नई उमंग 
एक नई तरंग 
और फिर 
मैं तुझे जोर से अपने आगोश में भर लेता था 
तेरे बदन की वो मस्तानी गंध 
जुल्फ़ों से तेरे उड़ती वो मदमस्त सुगंध 
मई भूल जाता था दोनों जहाँ 
वो आत्मा 
वो परमात्मा 

तेरे वक्ष का मेरे सीने से टकराना 
तुझे चूमते हुए सारा जहाँ भूल जाना 
तेरी घनेरी जुल्फ़ों का मेरे कंधों पर बिखर जाना 
तेरी उंगलियों का मेरे बालों में फिराना 
कैसे भूलूंगा मैं 

अचानक 
वो तेरा खुलकर मुझमे समा जाना 
मेरे सीने के नीचे वो तेरा बिछ जाना 
मुझमे रमते रमते रम जाना 
मुझे मिटाते मिटाते खुद मिट जाना 
कैसे भूलूंगा मै 

सिर्फ़ तू बस तू 
तेरे बाद कोई और नहीं 
तेरा हुस्न, मेरा इश्क 
इसके बाद कुछ और नहीं 
तेरे सिवा कोई और नहीं 
तेरा प्यार, तेरा दुलार
तेरा चुंबन, तेरा अहसास 
तेरा समर्पण, तेरा त्याग 
कैसे भूलूंगा मैं 

नहीं - शायद कभी नहीं 

-डॉ पीके वर्मा 

17/11/2012

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