सिंहासन खाली करो कि जनता आती है: रामधारी सिंह दिनकर
- [By: Asian Express Live || 2024-04-11 13:43 IST
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता? हां,लंबी - बडी जीभ की वही कसम,
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"
मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
- रामधारी सिंह दिनकर
RELATED TOPICS
- हर इक जिस्म घायल हर इक रूह प्यासी: साहिर
- कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे: नीरज
- ये कैसा इश्क़ है उर्दू ज़बां का: गुलज़ार
- मुझे अब डर नहीं लगता (नज़्म)
- वो पुराना कोट (काव्य): डॉ पीके वर्मा
- मुझको इतने से काम पे रख लो: गुलज़ार
- मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा
- मैं पयंबर तो नहीं, हूं तो पयंबर जैसा
- तुम झूठ को सच लिख दो अख़बार तुम्हारा है
- तो जिंदा हो तुम: डॉ पीके वर्मा
- वो पुराना कोट: डॉ पीके वर्मा
- ये तुम्हारे होंठ हैं या ग़ुलाब की पंखुड़ी दो: डॉ पी के वर्मा
- हमेशा देर कर देता हूँ मैं (नज़म)
- कर लूंगा जमा दौलत ओ जऱ ...उसके बाद क्या
- हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं: -जिगर मुरादाबादी
- वो क्यूं गया है, ये बताकर नही गया (ग़ज़ल)
- जब तक सांस आखिरी बाकी है मैं चलता रहूंगा: डॉ पीके वर्मा
- तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ (कविता)
- कैफियत हर एक इंसान की नजर आती है मुझे (कविता)
- दिल का दरवाजा तो खोल, मुझे भीतर तो आने दे (कविता)
- अचानक एक चमक की तरह तुम मेरे सामने चमक जाती हो (कविता)
- Princess of Beauty: While the time of my college, her house... (Poem)
- चाँद को धरा पर लाना हैं तुम्हें (कविता)
- Passionate Lips (Poem)
- Send Me A Kiss :Poem by Dr. P.K. Verma
- A Fairy On The Earth : Poem by Dr. P.K. Verma
- Pen, you are not merely a tool (Poem)
- 1982 में आयरन लेडी इंदिरा गांधी से मेरी पहली और आखिरी मुलाकात: डॉ पी के वर्मा
- ऐ जिंदगी, तुझे पाने की कशमकश में (कविता)
- टूटे पत्ते (कविता)