भाजपा के लिए सिरदर्द बनी कंगना रनौत, एक महीने में दो बार कराई सरकार की किरकिरी

  • [By: PK Verma || 2024-09-25 15:24 IST
भाजपा के लिए सिरदर्द बनी कंगना रनौत, एक महीने में दो बार कराई सरकार की किरकिरी

नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के मंडी संसदीय क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बनी कंगना रनौत अब भाजपा और मोदी सरकार के लिए सिरदर्द और मुसीबत बनती जा रही हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में सांसद बनी बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत जीतकर संसद भी पहुंच गईं। लेकिन अब उनकी बेबाकी या कहे बेतुकी बातों से भाजपा परेशान हो गई हैं। मोदी सरकार ने रद्द किए जा चुके तीन कृषि कानूनों को वापस लाने की जरूरत से जुड़े उनके बयान से किनारा कर लिया है। भाजपा हाईकमान से डांट खाने के बाद अब कंगना रनौत अपने बयान को निजी बता रही हैं। खेद जता रही हैं। शब्द वापस ले रही हैं। लेकिन कंगना के इस बेतुके बयान से विपक्षी नेताओं को मुददा मिल गया है। 

कंगना रनौत ने कहा था: दरअसल, मंगलवार को कंगना रनौत ने कहा कि तीनों कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे। और उन्हें फिर से लागू किया जाना चाहिए। कुछ राज्यों में किसान समूहों के विरोध के कारण सरकार ने कानूनों को रद्द कर दिया था। उन्हें पता था कि बयान पर विवाद होगा। उन्होंने कहा, 'मुझे पता है कि यह बयान विवादित हो सकता है। लेकिन तीन कृषि कानूनों को वापस लाया जाना चाहिए। किसानों को खुद इसकी मांग करनी चाहिए।' उन्होंने किसानों से अपील की कि वे अपनी भलाई के लिए रद्द हो चुके तीनों कृषि कानूनों को वापस लाए जाने की मांग करें। गौरतलब है कि 2021 में तीन कृषि कानूनों की वापसी ने भारतीय राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव छोड़ा था। इन तीनो कानूनों को लेकर किसान समुदाय और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच लंबे समय से विरोध हो रहा था, जो अंततः सरकार को उन्हें वापस लेने पर मजबूर कर गया। लेकिन अब बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने किसानों से जुड़े इन कानूनों की फिर से बहाली की बात कहकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

कंगना रनौत का यह विवादित बयान ऐसे समय में आया है जब 2021 में किसानों के भारी विरोध के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया था। इन कानूनों के कारण देशभर में किसानों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किया, जिसमें कई किसानों की जान भी गई। इस विरोध के बीच, सरकार को अंततः कानूनों को रद्द करना पड़ा।

क्या हैं तीन कृषि कानून: दरअसल विवाद के केंद्र में तीन कृषि कानून थे, जिन्हें 2020 में सरकार द्वारा पास किया गया था। इन कानूनों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार लाना था, ताकि किसानों को मंडियों के बाहर भी अपनी फसल बेचने की आजादी मिले। हालांकि, किसान संगठनों ने इन कानूनों का विरोध किया, यह कहते हुए कि इससे बड़े कॉर्पोरेट्स को फायदा होगा और मंडी प्रणाली तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म हो जाएगी।

  1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 – इस कानून का उद्देश्य किसानों को एपीएमसी मंडियों के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति देना था। हालांकि, किसानों को यह चिंता थी कि इससे मंडी प्रणाली और MSP खतरे में पड़ सकती है।
  2. कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 – यह कानून अनुबंध खेती को प्रोत्साहित करता था, जिससे किसान निजी कंपनियों के साथ सीधे समझौते कर सकते थे। किसानों को डर था कि बड़े कॉर्पोरेट्स इस कानून का फायदा उठाकर उन्हें शोषण का शिकार बना सकते हैं।
  3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 – इस कानून के तहत आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दालें, आलू, प्याज आदि को हटाने का प्रावधान किया गया था, जिससे भंडारण की सीमा समाप्त हो गई थी। किसानों का मानना था कि इससे जमाखोरी बढ़ेगी और उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलेगा।

किसानों का आंदोलन और कानूनों की वापसी: 2020 में जब ये कानून पारित किए गए, तब से ही किसानों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए। ये प्रदर्शन तब और भी बड़े हो गए जब किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल दिया। यह आंदोलन लगभग एक साल तक चला और इस दौरान कई दौर की बातचीत के बावजूद सरकार और किसानों के बीच कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई।

आखिरकार, 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में घोषणा की हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई थी। इसलिए सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेगी। यह घोषणा गुरु नानक जयंती के दिन की गई। और इसके बाद संसद में औपचारिक रूप से कानूनों को रद्द कर दिया गया।

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