सिंचाई विभाग के अफ़सरों की उदासीनता के चलते पीड़ित 25 सालों से न्याय को भटक रहा दलित कर्मचारी

  • [By: Meerut Desk || 2024-03-01 17:32 IST
सिंचाई विभाग के अफ़सरों की उदासीनता के चलते पीड़ित 25 सालों से न्याय को भटक रहा दलित कर्मचारी

मेरठ। बिजेंद्र कुमार निवासी ट्रांसपोर्ट नगर, सिंचाई विभाग में 1 जुलाई 1998 से 31 मई 1999 तक मस्टररोल पर कार्य किया। लेकिन विभाग ने उन्हें स्थाई करने के स्थान पर सेवा से बाहर कर दिया। पीड़ित ने विभाग के महीनों/सालों तक चक्कर काटे लेकिन विभाग के अघिकारियों ने कुछ नहीं किया। दरअसल मस्टरोल कर्मी को स्थाई होने के लिए नियमानुसार 240 दिवस तक कार्य करना अनिवार्य होता है। 240 दिन की अवधि की सेवा के उपरांत ही उसे स्थाई किया जा सकता है। 1 जुलाई 1998 से 31 मई 1999 तक विभाग में सेवाएं देने के बाद विभाग 3 पत्र अलग-अलग तारीखों में जारी करता है: बिजेंद्र कुमार द्वारा 1 अगस्त 1998 से 1 दिसंबर 1998 तक कुल 130 दिन कार्य किया गया। यह पत्र 26 मई 2001 को जारी किया गया। 104 कार्य दिवस का पत्र 24 अगस्त 2007 को जारी किया गया। और अंत में 300 कार्य दिवस का पत्र 2020 में जारी किया गया। पीड़ित को किसी भी तरह का लाभ न हो सिंचाई विभाग द्वारा 130, 104 और 300 दिन कार्य करने के पत्र जारी किये गए जोकि पीड़ित के उत्पीड़न की और संकेत करता हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है की सिंचाई विभाग द्वारा कर्मी बिजेंद्र कुमार द्वारा की गई सेवा दिवस को अलग-अलग तारीख़ों में अलग-अलग दिनों को दर्शाने वाले पत्र जारी किये गए। क्या यह सब सोची समझी साजिश के तहत किया गया, यह उच्च स्तरीय जांच का विषय है। 

श्रम न्यायालय का पीड़ित के पक्ष में फ़ैसला: विभाग दवारा उदासीनता पर पीड़ित बिजेंद्र कुमार ने श्रम न्यायालय में गुहार लगाई जिस पर श्रम न्यायालय मेरठ ने पीड़ित के पक्ष में फैंसला देते हुए सिंचाई विभाग को पीड़ित को पुनः सेवा बहाली एवं पूर्ण भुगतान करने का आदेश दिया। लेकिन श्रम न्यायालय मेरठ के आदेश का पालन करने के स्थान पर सिंचाई विभाग हाईकोर्ट चला गया जहां सिंचाई विभाग ने पीड़ित बिजेंद्र कुमार के कार्य दिवसों की संख्या के संबंध में हाई कोर्ट में ग़लत जानकारी उपलब्ध करा दी। हाईकोर्ट ने पीड़ित को लंपसम ढाई लाख रूपये का भुगतान करने का आदेश दिया। 

विभाग ने हाईकोर्ट और राजभवन को ग़ुमराह किया: 2020 में पीड़ित बिजेंद्र कुमार ने उत्तर प्रदेश की राज्यपाल के ऑफिस में न्याय की गुहार लगाते हुए पुनः सेवा बहाली और शेष भुगतान कराने के लिए प्रार्थना की जिसपर राज्यपाल ने प्रमुख सचिव विभाग/शासन से उक्त प्रकरण में आख्या मांगी जिसमे विभाग द्वारा आख्या के साथ पीड़ित द्वारा 300 दिन कार्य करने का उल्लेख किया जबकि हाई कोर्ट में विभाग ने 300 से कम दिन कार्य करने का पत्र दाख़िल किया था। मतलब हाई कोर्ट और राजभवन को पीड़ित द्वारा कार्य करने के दिनों की अलग-अलग संख्या बताई। अर्थात सिंचाई विभाग द्वारा दोनों को गुमराह किया गया।

नई भर्तियां निकाल अनुभवहीनो को नौकरी पर रखा: सिंचाई विभाग द्वारा 2007 और 2009 में विज्ञापन निकालकर लगभग 2 दर्ज़न अनुभवहीन आवेदकों को चतुर्थ श्रेणी में स्थाई नौकरी पर रख लिया गया। इस भर्ती प्रक्रिया में पीड़ित बिजेंद्र कुमार ने भी आवेदन किया था तथा साक्षत्कार में शामिल हुआ था। 

जिला शासकीय अधिवक्ता ने भी पीड़ित को पुनः नौकरी पर रखने की सलाह दी: इतना ही नहीं सिंचाई विभाग में इन भर्तियों में ही पीड़ित बिजेंद्र कुमार को भी पुनः नौकरी पर रखने के संबंध में जिला शासकीय अधिवक्ता से पत्र लिखकर इस बाबत राय मांगी, तो जिला शासकीय अधिवक्ता राज सिंह ने विभाग को पत्र लिखा की बिजेंद्र कुमार को नौकरी पर रखा जा सकता है इसमें कोई परेशानी नहीं है लेकिन सिंचाई विभाग ने 300 दिनों के अनुभवी बिजेंद्र कुमार को नौकरी पर नहीं रखा और बिना अनुभवी आवेदकों को नौकरी पर रख लिया।

1999 से आज तक लगभग 25 सालों से पीड़ित बिजेंद्र कुमार विभाग के चक्कर काटने को मजबूर है। विभाग की लापरवाही और उदासीनता के चलते आज भी पीड़ित न्याय मिलने की उम्मीद में सिर्फ विभाग के चक्कर ही काट रहा है। फाइलों पर नए नए कागज़ बढ़ते जा रहे है कार्यवाही कुछ नहीं हो रही है। 

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अपील के बाद भी सूचनाएं नहीं दी तो सिंचाई विभाग की राज्य सूचना आयोग से शिकायत: मिशन कंपाउंड निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी ने सिचाई विभाग गंगनहर शाखा से सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत 8 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। लेकिन अधिशासी अभियंता के जनसूचना अधिकारी ने नियमों का हवाला देते हुए मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराने से मना कर दिया। इस पर आरटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी ने प्रथम अपीलीय अधिकारी/ अधीक्षण अभियंता के कार्यालय में सूचनाओं के लिए अपील की। तिस दिन पूरे हो जाने के बाद भी प्रथम अपीलीय अधिकारी ने सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई। अंत में आरटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी ने पूरे मामले की शिकायत राज्य सूचना आयोग से की है। (16 May 2014)

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