यूपी में भाजपा की मनमानी और संघ से दूरी पड़ी भारी 

  • [By: PK Verma || 2024-06-11 16:22 IST
यूपी में भाजपा की मनमानी और संघ से दूरी पड़ी भारी 

2014 और 2019 के मुकाबले इस बार 2024 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी औंधे मुंह जा पड़ी। लगभग आधी सीटें हाथ से फिसल गई। वैसे तो यूपी में भारतीय जनता पार्टी के डूबने के कई कारण है। जैसे नरेंद्र मोदी की भाषा शैली, बेसिर पैर की बात, भैंस और मंगलसूत्र छीनने की बात, राममंदिर पर बुल्डोज़र चलवाने की बात और भी न जाने क्या क्या ऊलजलूल। परन्तु एक और बड़ी वजह है भारतीय जनता पार्टी के हारने की। वह वजह है राष्टीय स्वयंसेवक संघ से दूरी बनाना। जेपी नड्डा का खुलेआम कहना अब हमें संघ की जरुरत नहीं है। भाजपा खुद सक्षम है।

मेरी अपनी जानकारी के अनुसार संभवतः यह पहला चुनाव है जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति तैयार करने तक में भी राष्टीय स्वयंसेवक संघ से जरा भी सलाह-परामर्श नहीं लिया। राष्टीय स्वयंसेवक संघ को एक कोने में बिठा दिया। जिसके चलते राष्टीय स्वयंसेवक संघ ने भी खुद को अपने वैचारिक कार्यक्रमों तक ही समेटे रखा और भारतीय जनता पार्टी की चुनावी गतिविधियों से पूरी तरह से दूरी बना ली। इसका भारतीय जनता पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। यह पहला चुनाव था जिसमें चुनावी प्रबंधन में राष्टीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी में दूरिया स्पष्ट नज़र दिखी। भारतीय जनता पार्टी ने किसी भी निर्णय में राष्टीय स्वयंसेवक संघ से जरा भी सलाह-परामर्श करने तक की भी जरूरत नहीं समझी। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मौन धारण करना ही उचित समझा। ग़ौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावी जमीन तो राष्टीय स्वयंसेवक संघ ही तैयार करता रहा है। लेकिन एक बात बड़ी गौर करने योग्य है। यदि नरेंद्र मोदी पूरे बहुमत से तीसरी बार अपनी सरकार बना लेते तो शायद राष्टीय स्वयंसेवक संघ नरेंद्र मोदी कभी पूछते भी नहीं। भारतीय जनता पार्टी और राष्टीय स्वयंसेवक संघ में दूरियां बहुत अधिक बढ़ जाती। 

इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में किसी भी स्थान पर न तो राष्टीय स्वयंसेवक संघ और न ही भारतीय जनता पार्टी की समन्वय समितियां नज़र आई। इस बार मतदान का प्रतिशत कम होने पर लोगों को घर से निकालने वाले संघ के विभिन्न समूह भी इस लोकसभा चुनाव में कहीं नहीं दिखे। भारतीय जनता पार्टी और संघ में निष्ठा रखने वाले असंख्य लोग इस बार हैरान थे कि राष्टीय स्वयंसेवक संघ चुनाव में मदद क्यों नहीं कर रहा। आखिर ऐसा क्या हुआ जो राष्टीय स्वयंसेवक संघ ने लोकसभा चुनाव से पूरी तरह से किनारा कर लिया। इस पर जो बात निकलकर सामने आई तो पता चला कि राष्टीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कुछ वर्तमान, पूर्व पदाधिकारियों व प्रचारकों के अनुसार इसकी मुख्य वजह भारतीय जनता पार्टी के एकल निर्णय और पार्टी की राष्टीय स्वयंसेवक संघ के संगठनों के साथ संवादहीनता रही। माना जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के संघ के बारे में बयान ने आग में घी डालने का काम किया। जेपी नड्डा ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गई है। इसलिए उसे अब संघ के समर्थन की जरूरत नहीं है। नड्डा के इस बयान ने भी स्वयंसेवकों को हैरान और उदासीन कर दिया। राष्टीय स्वयंसेवक संघ के एक पूर्व वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि संघ अचानक तटस्थ होकर नहीं बैठा था। दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में मिले परिणामों के बाद आत्ममुग्धता से लबरेज भारतीय जनता पार्टी ने अपने सियासी फैसलों में राष्टीय स्वयंसेवक संघ को पूरी तरह से नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था।

भारतीय जनता पार्टी में जब राष्टीय स्वयंसेवक संघ की सलाह मशविरे को पूरी तरह से अनदेखा कर कई छोटे बड़े फैंसले लिए गए जिससे राष्टीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के रिश्तों में दरार आनी लाजमी थी। अयोध्या में श्रीरामलला के प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर भी भारतीय जनता पार्टी और राष्टीय स्वयंसेवक संघ कई मतभेद उभरकर सामने आये। अपनी अनदेखी पर राष्टीय स्वयंसेवक संघ ने भी अपनी भूमिका को समेट लिया। 

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए टिकट बटवारें पर भी संघ ने कई उम्मीदवारों को टिकट दिए जाने पर अपनी असहमति जाहिर की लेकिन संघ की इस असहमति की एक सिरे से ख़ारिज कर दिया गया। कहा जा रहा है की राष्टीय स्वयंसेवक संघ कई उम्मीदवारों से असहमत था संघ ने उत्तर प्रदेश के रायबरेली, कानपुर, बस्ती, अंबेडकरनगर, जौनपुर, प्रतापगढ़ सहित प्रदेश की लगभग 25 सीटों के उम्मीदवारों पर असहमति जताई थी। साथ ही बड़े पैमाने पर दूसरे दलों के दागी लोगों को भारतीय जनता पार्टी में शामिल करने पर भी नाराजगी ज़ाहिर की थी। लेकिन संघ की किसी भी नाराजगी या असहमति पर भारतीय जनता पार्टी ने कोई तव्वजो नहीं दी। दूसरे दलों से भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया गए कई दागी चेहरों के कारण भारतीय जनता पार्टी में गुटबाज़ी शुरू हो गई। लेकिन राष्टीय स्वयंसेवक संघ को पूरी तरह से अनसुना करने के चलते संघ ने ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली। राष्टीय स्वयंसेवक संघ जब उदासीन हुआ तो मतदान के समय ज्यादातर स्थानों पर न तो भाजपा के वोटरों को निकालने वाले दिखे और न उन्हें समझाने वाले कहीं नज़र आये। लिहाजा ज्यादातर मतदान केंद्रों पर 2014, 2019, 2017 और 2022 वाला चुनावी प्रबंधन नहीं दिखा।

लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा के एक साल पहले ही राष्टीय स्वयंसेवक संघ ने अपने वैचारिक कार्यक्रम के तहत जनता से संवाद करना शुरू कर दिया था। लोकसभा चुनाव की घोषणा होने तक सभी लोकसभा क्षेत्रों में एक-एक लाख बैठकें हो चुकी थीं। अपने वैचारिक कार्यक्रम के तहत संघ के जमीनी कार्यकर्ता 10-20 परिवारों के साथ बैठकें करके मतदाताओं को मतदान के लिए जागरूक करने, सांस्कृतिक और राष्ट्रवाद के एजेंडे पर हुए कार्यों की चर्चा कर माहौल बनाया था। लेकिन भाजपा ने इस पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और संघ द्वारा की गई इस मेहनत का फायदा उठाने से भारतीय जनता पार्टी चूक गई। इस बार भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी अबकी बार चार सौ पार की बयानबाज़ी से ही खुश होते नज़र आ रहे थे। जमीनी हक़ीक़त वह समझ नहीं पाए। और इस तरह से संघ से दूरी बनाने का दुष्परिणाम यह भी रहा कि जमीनी स्तर पर काम करने वाला भारतीय जनता पार्टी का संगठन भी पूरी तरह से सक्रिय नहीं रहा।

माना जा रहा है कि संघ से बेहतर समन्वय नहीं बनने की वजह से भारतीय जनता पार्टी की अधिकांश बूथ कमेटियां व पन्ना प्रमुख भी निष्क्रिय और उदास बैठे रहे। वहीं संघ के स्थानीय कार्यकर्ता निरंतर जनता के बीच काम करते हैं और संगठन से जनता को जोड़ने में उनकी प्रमुख भूमिका होती है। समन्वय नहीं होने की वजह से दोनों तरफ के कार्यकर्ता उदासीन रहे। नतीजा यह हुआ कि तमाम घरों पर परिवारों तक पर्चियां तक नहीं पहुंच पाई। मतदान का प्रतिशत में नीचे आ गया और परिणाम स्वरूप यूपी से आधी सीटें निकल गई। इतना ही नहीं नरेंद्र मोदी ऐसे पहले सिटिंग प्रधानमंत्री भी बने जो डेढ़ लाख वोट यानी अब तक के प्रधानमंत्रियों में सबसे कम वोटो से चुनाव जीते। 

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