कब तक साथ रहेंगे नरेंद्र मोदी, नितीश और चंद्रबाबू नायडू 

  • [By: PK Verma || 2024-06-08 18:01 IST

विधान सभा हो या लोकसभा चुनाव। चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी ने नितीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को क्या-क्या नहीं कहा। नरेंद्र मोदी मुस्लिम आरक्षण के विरोधी है जबकि चंद्रबाबू नायडू मुस्लिम आरक्षण के हिमायती। अभी चंद्रबाबू नायडू ने मुस्लिमों के लिए हज़ यात्रा के लिए एक लाख रूपये की सहायता की बात की है। तो ऐसे दो विरोधी विचारधाराओं वाले लोग एक मंच पर कैसे आ सकते है। यह तो सीधा सीधा मतदाताओं का भरोसा तोड़ने या वोट बेचने वाली बात हुई। आसान शब्दों में नरेंद्र मोदी को लोगों ने उनकी मुस्लिम विरोधी विचारधारणा के लिए दी। लेकिन कुर्सी के लिए नरेंद्र मोदी ऐसे राजनीतिक दल के साथ गठबंधन कर रहे है जो मुस्लिमों के आरक्षण का हिमायती है। यानी चंद्रबाबू नायडू। दूसरी और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी को आँध्रप्रदेश की जनता ने इसलिए वोट दिया था कि वह मुस्लिमों के हक़ की बात करते है। अब यदि चंद्र बाबू नायडू नरेंद्र मोदी के साथ गठबंधन करते है तो यह एक प्रकार से उन लोगों की वोटों का सौदा करना हुआ जिन्होंने नायडू को उनके मुस्लिम प्रेम के लिए वोट किया। लेकिन जब बात राजनीती की आती है तो तमाम सिद्धांत और उसूल धरे रह जाते है। राजनीती का सीधा मतलब है कुर्सी। और कुछ नहीं। 

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अब दूसरे पॉइंट पर आते है। नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को एक डर जरूर होगा कि अगर कहीं उन्होंने मोदी को अपनी-अपनी पार्टी का समर्थन दे दिया तो साल भर के अंदर उन्हें वह दिन देखना पड़ेगा, जब एक दिन सुबह वह सोकर उठेंगे तो उनके सारे सांसद भाजपा में शामिल हो चुके होंगे और वे अकेले खड़े होंगे। क्योंकि भाजपा का इस काम में ट्रैक रिकॉर्ड है। 

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जम्मू कश्मीर की बड़ी नेता महबूबा मुफ़्ती ने भी भाजपा के साथ आकर राज्य में सरकार बनाई। लेकिन महबूबा मुफ़्ती की पार्टी का कही कुछ पता नहीं। अगर बात नीतीश कुमार की करें तो जनता दल यूनाइटेड कभी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी थी। पिछले विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड तीसरे पायदान पर पहुँच गई। सभी जानते है कि भाजपा से पुराने रिश्तों के कारण ही चंद्रबाबू नायडू एक ज़माने में आँध्र प्रदेश के सर्वोच्च नेता से घटते-घटते ग़ायब हो गए थे। सालों तक गुमनामी में रहने के बाद 2024 में अचानक किस्मत चमकी और किंग मेकर बन गए। महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे यह दर्द झेल चुके हैं। दोनों की पार्टी असली नकली में बांट दी गई। दोनों पार्टियों के विधायक और सांसदों को तोड़कर नई शिवसेना और नई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना दी गई। 

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उत्तर प्रदेश में न जाने किस अज्ञात दबाव में भाजपा से डरने वाली मायावती की बहुजन समाज पार्टी भारत की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी से शून्य पर पहुँच चुकी है। एक समय ऐसा था जब पंजाब में भाजपा की अच्छी पकड़ थीं। पंजाब की क्षेत्रीय पार्टी के साथ भाजपा के लंबे समय तक गठबंधन रहा। अकाली दल वाले आज एक सीट पर सिमट गए है।तेजतर्रार तमिल नेता जयललिता ने कभी एक वोट से भाजपा की सरकार गिरा दी थी। लेकिन भाजपा के साथ आने के बाद कभी तमिलनाडु की बहुत बड़ी शक्ति होने वाली उनकी पार्टी आज आखिरी साँस ले रही है। पश्चिमी बंगाल की बात करें तो बुद्धिमान ममता बनर्जी ने समय रहते भाजपा से अपना संबंध ख़त्म कर दिया था जिसके चलते वह आज तक शान से राज्य में शासन कर रही है। कई प्रयासों के बाद भी भाजपा ममता बनर्जी को हिला भी नहीं सकी। 

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सालों से पर्दे के पीछे से बार-बार भाजपा की मदद करने वाले नवीन पटनायक आज अपने राज्य से बेदख़ल हो चुके हैं। हरियाणा में कुछ साल पहले नई ताकत के रूप तौर पर उभरी जजपा एक बार भारतीय जनता पार्टी के साथ आई। और राज्य में सरकार बनाई। लेकिन साढ़े चार साल में ही जजपा का बेडा गर्क हो गया। गोवा में गोवांतक पार्टी का लगभग ऐसा ही हाल रहा। आज पता नहीं कहां है। 

आखिर में सार यही निकलता है कि भाजपा ने जिस-जिस भी पार्टी के साथ गठबंधन किया या तो वह पार्टी टुकड़ों में बंट गईं या कोमा में चली गई। 

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