अपने ससुर एनटीआर की पार्टी में बगावत कराकर पार्टी पर कब्ज़ा करके मुख्यमंत्री बनने वाले एन चंद्रबाबू नायडू
- [By: PK Verma || 2024-06-21 17:11 IST
एशियन एक्सप्रेस लाइव की स्पेशल रिपोर्ट:
नन्दमूरि तारक रामाराव यानी एनटी रामाराव और एनटीआर (28 मई 1923 -18 जनवरी 1996) तेलुगु फ़िल्म अभिनेता, निर्देशक, निर्माता एवं राजनेता थे। उन्होने तेलुगु देशम पार्टी की स्थापना की और आंध्र प्रदेश के 3 बार मुख्यमंत्री रहे। अपने राज्य आंध्र प्रदेश को कांग्रेस के आधिपत्य दूर करने के लिए एनटी रामाराव ने वर्ष 1982 में तेलुगु देशम नामक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की। जब एनटी रामाराव ने राजनैतिक पारी की शुरूआत की उस समय वह एक लोकप्रिय अभिनेता थे। तेलुगुभाषी लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते थे। एनटी रामाराव के पुत्र नन्दमूरी बालकृष्ण ने अपने पिता की सिनेमाई और राजनीतिक जीवन को बड़े परदे पर फ़िल्म के रूप में उतारा। नन्दमूरी बालकृष्ण ने खुद अपने पिता एनटी रामाराव के चरित्र को निभाया। फ़िल्म को दो हिस्सों एनटीआर: कथानायकूड़ु और एनटीआर: महानायकूड़ु। लेकिन दोनों ही फिल्में बुरी तरह से पिट गई। तेलुगु निर्देशक एसएस राजामौली की लोकप्रिय फ़िल्म आरआरआर में काम करने वाला अभिनेता जूनियर एनटीआर है जो एनटी रामाराव का पौता है।
दरअसल फिल्मों से सन्यास लेने के बाद एनटीआर ने राजनीति में जाने का फ़ैसला किया। वर्ष 1983 में सर्वसम्मति से एनटी रामाराव को तेलुगु देशम विधायक दल का नेता चयनित किया गया। जिसमें दस कैबिनेट मंत्री और पांच राज्य मंत्री थे। एनटी रामाराव आंध्र-प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री बने। 1983 से 1994 के बीच वह तीन बार मुख्यमंत्री पद के लिए चुने गए थे।
एनटी रामाराव पत्नी का नाम अदुसुमाली बसवाताराकम था। दरअसल एनटी रामाराव को सूरज उगने से पहले उठने की आदत थी। रामाराव की पत्नी उनसे अपनी घड़ी मिलाकर रखती थी। और अपने पति के आराम का पूरा ध्यान रखने के लिए उनसे पहले जाग जाती थी। लेकिन 1984 में कैंसर से एनटी रामाराव की पत्नी की मौत हो गई। पत्नी की मौत के बाद एनटी रामाराव अकेले रहने लगे। वह बहुत काम लोगों से मिलते थे। उनसे मिलने वालों में अधिकतर प्रोड्यूसर निर्देशक और फिल्म लेखक हुआ करते थे जिनसे उनके सिर्फ व्यावसायिक संबंध ही हुआ करते थे। उनके 5 पुत्र और 5 बेटियां थी। उनके कई पुत्रों की मृत्यु उनके बचपन में ही हो चुकी थी। एनटी रामाराव बहुत ही कम समय अपने बच्चों के साथ बिता पाते थे।
कुछ समय बीतने के बाद एनटी रामाराव की खाली जिंदगी में एक महिला की एंट्री होती है। उसका नाम लक्ष्मी पार्वती था। वह एनटी रामाराव की बहुत बड़ी फैन थी। रोजाना मिलने पर एनटी रामाराव और लक्ष्मी पार्वती एक दूसरे से प्यार करने लग जाते है। वह पहले रामाराव की प्रेमिका बनती है और फिर उनकी पत्नी। लक्ष्मी पार्वती रामाराव के पैर छूकर अपनी भक्ति दिखाती है और उनको स्वामी कहकर संबोधित करती है। इसके बाद दोनों एक दूसरे के और करीब आते चले जाते हैं। चंद्रहास और के लक्ष्मी नारायण ने अपनी किताब एनटीआर और बायोग्राफी में लिखते हैं:
शुरू में एनटीआर लक्ष्मी-पार्वती को बस स्टैंड से लेने अपना एक आदमी भेजते थे जो ऑटो रिक्शा पर उन्हें एनटीआर के निवास पर लाता था। लक्ष्मी-पार्वती एनटीआर के साथ शनिवार और रविवार को रहती थी और सोमवार को अपने घर वापस लौट जाती थी। एनटीआर ने लक्ष्मी-पार्वती के घर पर टेलीफोन लगवा दिया था ताकि वह उनसे फोन पर बात कर सके। गर्मियों की छुट्टी में लक्ष्मी-पार्वती पूरे 2 महीने एनटीआर के साथ बिताती थी। जब इस लव स्टोरी के बारे में पहली बार चर्चा हुई तो एनटीआर ने इसका खंडन नहीं किया, लक्ष्मी पार्वती ने भी इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया स्वीकार किया।
लक्ष्मी-पार्वती पर एनटीआर का फायदा उठाने का आरोप लगाया। इस पर एनटीआर ने सफाई देते हुए कहा कि इस उम्र में यौन संबंध मेरे लिए इतना महत्व नहीं रखते। इस समय मुझे स्नेह और साथ की जरूरत है। लक्ष्मी मेरे लिए मात्र एक साथी की तरह है। उस समय लक्ष्मी-पार्वती विवाहित थी और उनके पति सुब्बाराव को इस बात की शिकायत की गई थी कि उनकी पत्नी किसी दूसरे मर्द के साथ रह रही है। इसके बाद लक्ष्मी पार्वती और सुब्बाराव ने अदालत में तलाक की अर्जी दी। जिस दिन अदालत में तलाक का आदेश पारित किया उसी दिन एनटीआर को लकवा मार दिया। दरअसल एनटी रामाराव को दिल की बीमारी थी। तब भी वह अधिक कैलोरी का खाना बड़ी मात्रा में खाते थे। मधुमेह से पीड़ित होने के बावजूद उन्होंने मिठाई खाना बंद नहीं किया। वह अपनी दवाइयां भी नियमित रूप से नहीं खाते थे। लेकिन इस सब के बावजूद उनका चेहरा चमकता रहता था। इस बीमारी के दौरान लक्ष्मी-पार्वती ने ही एनटीआर की अच्छी तरह से देखभाल की। अमेरिका से इलाज करवा कर वापिस लौटकर आने के बाद एनटीआर ने लक्ष्मी-पार्वती के साथ अपनी शादी का ऐलान कर दिया।
मंच से बोलते हुए एनटीआर ने चिल्लाकर लक्ष्मी-पार्वती को मंच पर बुलाया। वह अपने लाखों प्रशंसकों के सामने लक्ष्मी-पार्वती के गले में पवित्र धागा बांधने के लिए तैयार थे। लेकिन सभा में सबसे आगे की सीट पर बैठे हुए उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू को पता था कि क्या होने वाला है। इसलिए चंद्रबाबू नायडू ने तुरंत मंच की बिजली कटवा दी और फिर वहां पर सिर्फ अंधेरा छा गया। एनटीआर का भाषण बीच में ही समाप्त हो गया और लोगों को पता नहीं चल पाया कि एनटीआर ने लक्ष्मी-पार्वती के गले में वह पवित्र धागा बांधा या नहीं।
कहा जाता है कि एनटीआर किसी की भी कोई भी सलाह मानने के लिए तैयार नहीं होते थे। वह अपनी मनमानी करते थे। उन्हें किसी की परवाह नहीं थी। वह एक तानाशाह थे। इतना ही नहीं वह अक्सर वह भावनात्मक हो जाते थे और हर बात पर शक करते थे। लक्ष्मी पार्वती का उन्हें एक तरह से जुनून सा हो गया था। कहा जाता है कि जिस तरह से चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटीआर के खिलाफ माहौल खड़ा किया। उसे राजनीतिक रणनीति का एक बहुत बड़ा नमूना माना जा सकता है। दूसरी और एनटीआर का परिवार यानी बेटे-बहु, बेटी-दामाद और नाती-पौते तमाम लोग लक्ष्मी पार्वती को नफ़रत और शक की नजर से देखते थे। और यह बात चंद्रबाबू नायडू को भली भांति पता थी। नायडू इस बात को जानते थे कि उन्हें किस-किस को किसके खिलाफ और कब और कहां इस्तेमाल करना है।
सबसे पहले चंद्रबाबू नायडू ने अपने साले डॉक्टर रघुपति वेंकटेश्वर राव को उपमुख्यमंत्री पद का लालच देकर अपनी तरफ किया। हालांकि नायडू को मालूम था कि वह इस वायदे को पूरा नहीं कर पाएंगे। लेकिन जब तक नायडू का निशाना लक्ष्मी-पार्वती थी एनटीआर ने इस विद्रोह को गंभीरता से नहीं लिया जब तक उन्हें पता चल पाता की असली निशाना वह खुद है तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दरअसल एनटीआर को अपने अधिकतर विधायकों के नाम तक पता नहीं थे। एनटीआर को साधारण नेताओं की परेशानियों को दूर करना तो दूर उनसे बात करना तक पसंद नहीं था। क्योंकि वह फिल्मों में सुपरस्टार रह चुके है। लोग उन्हें भगवान की तरह मानती थी।
दूसरी तरफ एनटीआर के पीठ पीछे चंद्रबाबू नायडू पूरी पार्टी को अपने कब्जे में करने की जुगत में लगे हुए थे। जब तेलुगु देशभक्ति की कार्यकारिणी का पुनर्गठन करने में एनटीआर ने तमाम मांगे मानने से इनकार कर दिया था और घमंड के साथ कहा कि आप सब मिलकर भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते और अगर जरूरी हुआ तो मैं पार्टी को ही भंग करने में तनिक भी नहीं सोचूंगा। यह सुनकर पार्टी नेता शांत रहे और बिना कुछ कहे वहां से चले आए। नायडू ने अपने पक्ष में 171 विधायक कर लिए थे जो उनके साथ वायसरॉय होटल में रुके हुए थे। उन्होंने वहीं से राज्यपाल को फैक्स भेजा कि एनटीआर विधानसभा में अपना बहुमत खो चुके हैं।
जब एनटीआर को अपने दामाद नायडू की इस हरकत का पता चला तो उन्होंने आसमां सर पर उठा लिया। उन्होंने विधानसभा को भंग करने के लिए अपना पूरा दमखम लगा दिया। लेकिन कुछ नहीं कर सके। आखिर में आंध्र प्रदेश के राज्यपाल ने उन्हें 30 अगस्त तक बहुमत सिद्ध करने का समय दिया। एनटीआर ने पूर्व राज्यपाल रामलाल का उदाहरण देते हुए 15 सितंबर तक का समय मांगा। लेकिन राज्यपाल कृष्णकांत ने इस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए बहुमत सिद्ध करने का समय सिर्फ एक दिन बढ़कर 31 अगस्त कर दिया। इसी बीच एनटीआर बीमार पड़ गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। जब राज्यपाल उन्हें देखना अस्पताल गए तो एनटीआर ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया। उसी दिन चंद्रबाबू नायडू को तेलुगूदेशम पार्टी के विधायक दल का नेता चुन लिया गया और अगले ही दिन यानी 1 सितंबर को नायडू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शपथ लेने के बाद नायडू अपनी पत्नी भुवनेश्वरी (एनटीआर की बेटी) और बेटे लोकेश के साथ एनटीआर के निवास स्थान गए। तीनों विजिटर हाल में करीब 1 घंटे तक बैठे रहे। लेकिन एनटीआर ने ना तो उनसे ऊपर अपने कमरे में आने के लिए कहा और नहीं वह नीचे उनसे मिलने आए। एनटीआर के सचिव भुजंग राव को आखिर उनसे कहना पड़ा एनटीआर अस्वस्थ है और उनसे मिलने की स्थिति में नहीं है।
कहा जाता है कि एनटीआर के पास उन राजनीतिक सलाहकारों की कमी थी जो उन्हें विधायकों को साथ रखने का सुझाव बताते। इस मामले में लक्ष्मी-पार्वती चंद्रबाबू नायडू से 19 साबित हुई। इस बात पर अटकलें लगाई जा सकती है कि अगर लक्ष्मी-पार्वती सिर्फ़ ग्रहणी बनकर ही संतुष्ट हो गई होती और उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होती तो क्या एनटीआर अपनी मृत्यु तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रह सकते थे और चंद्रबाबू नायडू उनकी सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते। एनटीआर ने अपनी पत्नी के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया। आखिर में सत्ता भी उनके हाथ से चली गई। उनके अपने दामाद ने परिवार वालों की मदद से उन्हें सत्ता से बाहर फेंक दिया। इसके बाद एनटीआर ने नायडू को कभी माफ नहीं किया।
7 सितंबर 1995 को जब विधानसभा की बैठक शुरू हुई तो एनटीआर वक्तव्य तक नहीं पढ़ने दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि वह विश्वास मत हो जाने के बाद ही एनटीआर को बोलने की अनुमति दी जाएगी। चंद्रबाबू नायडू का 183 तेलुगुदेशम विधायकों ने समर्थन किया। राज्य की सत्ता से हटने के साढे चार महीने बाद यानी 17 जनवरी 1996 को एनटीआर को दिल का दौरा पड़ा और कुछ ही समय में एनटीआर का निधन हो गया। निधन के बाद एनटीआर के अंतिम दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को आंध्र प्रदेश के लालबहादुर स्टेडियम में रखा गया। जहां लाखों की भिड़ जमा थी। लक्ष्मी-पार्वती एनटीआर के पार्थिव शरीर के सिरहाने एक कुर्सी पर बैठकर उनके चेहरे को छूते हुए रो रही थी। मंच पर लक्ष्मी-पार्वती का समर्थन करने वाले विधायक भी मौजूद थे। यह एनटीआर का जलवा ही था की उनकी शवयात्रा के समय लाखों की संख्या में भीड़ मौजूद थी जो अपने प्यारे सुपरस्टार और पूर्व मुख्यमंत्री के निधन पर दहाड़े मार-मार कर रो रहे थे। कहा जाता है महात्मा गाँधी की शवयात्रा में जो लाखों लोगों की भीड़ शामिल थी उनके बाद एनटीआर की शवयात्रा में इतनी भीड़ देखी गई।
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