बाबा का कद और रुतबा कम करने की तैयारी

  • [By: PK Verma || 2024-06-20 15:39 IST

डॉ पीके वर्मा की ख़ास रिपोर्ट। 

लोकसभा चुनावी रिजल्ट में अहंकार टूटने के बाद और बैसाखी पर आ जाने के बाद दिल्ली वाले साहेब और यूपी वाले बाबा के बीच तनातनी बढ़ गई है। अपने देखा होगा अभी हाल ही में दिल्ली में शपथ गृहण समारोह में जब-जब कैमरा बाबा पर जाता तो बाबा तनाव और परेशानी में दिखाई दे रहे थे। इस सभा में नरेंद्र मोदी और भाजपा के अन्य तमाम छोटे बड़े नेता भी मौजूद थे। दिल्ली-गुजरात वालों का कहना है ये उत्तर प्रदेश में पार्टी की किरकिरी बाबा की वजह से हुई है। खैर बात जब निकलती है तो दूर तलक जाती है। लेकिन जो भी साहेब की तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की तमन्ना तो पूरी हो ही गई। वो बाद की बात है कि इस बार सरकार कितने दिन या कितने महीने चलेगी। दूसरी और आजादी के बाद साहेब वाराणसी सीट से सबसे कम मार्जिन से जीतने वाले पहले सिटिंग प्रधानमंत्री भी बन गए है। यह बात भी साहेब को परेशान किये हुए है। अरबों रूपये बर्बाद करके बनाई गई छवि जनता ने एक झटके में चकनाचूर कर दी। 

अगले 6 महीनों में हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने है जिसका भाजपा को हारने का पूरा खतरा है। और यदि ऐसा होता है तो साहेब और और उनके वजीर की राजनीति पर बड़ा और बुरा असर पड़ेगा। तो लिहाजन यूपी वाले बाबा का इलाज बांधना तो जरुरी हो गया है। 

जब से साहेब की सरकार बैसाखी पर आई है तब से बाबा पर हाथ डालना मतलब आग में हाथ डालने के सामान हो गया है। अगर बहुमत आ जाता तो एक झटके में बाबा को कुर्सी से हटाया जा सकता था। लेकिन बैसाखी पर चल रही सरकार बाबा को हटाने का खतरा मोल नहीं ले सकती। तो लिहाज़ा दिमाग़ लगाना होगा की सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे। 

और फिर दिमाग़ लगाने पर एक विचार पैदा हुआ कि बाबा को हटा नहीं सकते तो उन्हें कमजोर और उनका कद छोटा तो कर ही सकते है। यानी उत्तर प्रदेश का कई टुकड़ों में बंटवारा। 

दिल्ली में हाई लेवल पर सियासी चर्चा है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 3 टुकड़े करके 26+27+27  लोकसभा सीटें यानी 80 लोकसभा सीटों का बंटवारा। यानी पूर्वांचल प्रदेश, अवध प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बांट दिया जाये। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद बाबा को पूर्वांचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। ऐसा करने से एक तो बाबा का कद सिमट और घट जाएगा और इनके साथ ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा को पीछे धकेलकर 37 सीट जीतकर प्रदेश में नंबर एक और देश में तीसरे स्थान पर पहुंचने वाली समाजवादी पार्टी भी तीन राज्यों में बंट कर कमजोर हो जाएगी। 

आप जानते ही है कि उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड (9 नवंबर 2000) अलग होने के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उत्तराखंड में बेकार हो गई है है। बिहार में से झारखण्ड (15 नवंबर 2000) काटने के बाद नितीश कुमार और लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव या चिराग पासवान को झारखण्ड में कोई नहीं पूछता। साथ ही जम्मू कश्मीर से अलग होने वाले लद्दाख (31 अक्टूबर 2019) में महबूबा मुफ़्ती और अब्दुल्ला परिवार यहां पर बेगाने हो गए है। आंध्र प्रदेश से तेलंगाना (2 जून 2014) कटने के बाद चंद्रबाबू नायडू और केसीआर अपने अपने राज्य में सिमटकर रह गए है। और अब यदि उत्तर प्रदेश का भी कई टुकड़ों में बंटवारा होता है तो अखिलेश यादव, जयंत सिंह, मायावती जैसे लोग किसी एक ही नए बने राज्य में सिमटकर रह जायेंगे। गुजराती जोड़ी का मास्टर प्लान तो यही है। 

खैर अभी बहुत कुछ है। क्या बाबा अपना कद छोटा होता देख चुप रहेंगे। यह तो भविष्य की बात है अभी तो तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी को संसद में अपना बहुमत भी सिद्ध करना है। 

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