भ्रष्टाचार खुलने से डर से आउटसोर्सिंग कंपनी से सम्बंधित जनसूचना का विवि ने नहीं दिया जवाव

  • [By: Meerut Desk || 2024-09-28 18:07 IST
भ्रष्टाचार खुलने से डर से आउटसोर्सिंग कंपनी से सम्बंधित जनसूचना का विवि ने नहीं दिया जवाव

मेरठ। सामाजिक कार्यकर्ता आदेश कुमार ने कहा कि 15 अगस्त 2024 को पजीकृत डाक से सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अनुसार विवि प्रशासन से आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा उपलब्ध कराये गए कर्मियों की शैक्षिक योग्यता, टेक्निकल योग्यता, अनुभव, उपस्थिति और वेतन एवं निविदा आदि से सम्बंधित प्रपत्रों की प्रामाणिक छायाप्रति उपलब्ध कराने के लिए सूचना के अधिकार का पत्र भेजा था। जिसका डेढ़ माह बाद भी जवाब नहीं दिया गया है। जनसूचना में मांगी गई जनसूचना आवेदन में ऐसे बिंदुओं पर जनसूचना मांगी गई है जिसका जवाब देने पर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय का बड़ा भ्रष्टाचार खुल सकता है। शायद भ्रष्टाचार खुलने के भय से ही जनसूचना का जवाब नहीं दिया गया है। 

भ्रष्टाचार खुलने के डर से नहीं दिया जनसूचना का जवाब: विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव संजीव कुमार के अनुसार जीए डिजिटल वेब वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड को जुलाई माह में लगभग 30 लाख रूपये का भुगतान किया गया है। 60 क्लेरिकल एवं कंप्यूटर ऑपरेटर कर्मी को 18500 रूपये प्रतिमाह प्रति कर्मी और 80 सफाईकर्मियों को 7700 रूपये प्रतिमाह प्रति कर्मी निर्धारित है। यूनिवर्सिटी के लेखाधिकारी से जब आउटसोर्सिंग कंपनी को किये गए भुगतान एवं कर्मचारियों की योग्यता एवं वेतन आदि के बारे में पूछा तो उन्होंने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि तमाम जानकारी या तो लिखित में मांगिए अथवा सामान्य विभाग से संपर्क करें। लेकिन लिखित में जनसूचना का जवाब मांगने पर भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने आज डेढ़ महीना होने पर भी जनसूचना का जवाब नहीं दिया है। जनसूचना का जवाब नहीं देने पर आरटीआई एक्टिविस्ट आदेश कुमार ने जनसूचना प्राप्त करने के लिए प्रथम अपील के तहत आवेदन किया है। 

आउटसोर्सिंग कर्मचारी: राजभवन में यूनिवर्सिटी की आउटसोर्सिंग कंपनी के ख़िलाफ़ शिकायत करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट आदेश कुमार के अनुसार यूनिवर्सिटी परिसर में आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा 80 सफाईकर्मी में से 60 से अधिक सिर्फ़ कागज़ों में हैं। भौतिक रूप से विवि परिसर में नहीं आते। अटेंडेंस के नाम पर भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। बिना काम करे ही आउटसोर्सिंग कंपनी और यूनिवर्सिटी अधिकारियों की मिलीभगत से लाखों की बंदरबाट हो रही है। इसके अतिरिक्त आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा 60 के आसपास लिपिकीय और कंप्यूटर ऑपरेटर के पास पर्याप्त योग्यता भी नहीं। कई कंप्यूटर ऑपरेटर के पास कंप्यूटर की बेसिक नॉलेज भी नहीं है। आउटसोर्सिंग कंपनी ने अयोग्य लोगों को यूनिवर्सिटी परिसर में घुसा दिया है। 

300 करोड़ का भ्रष्टाचार: लेकिन एक बात तो तय है कि विश्वविद्यालय प्रशासन प्रशासन जानबूझ कर जनसूचना का जवाब नहीं दे रहा है। मांगी गई जनसूचनाओं का जवाब देने से कई बड़े भ्रष्टाचार खुल सकते है।

ग़ौरतलब है कि इसी महीने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह से एक दिन पहले भारतीय जनता पार्टी की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने विश्वविद्यालय की कुलपति, वित्त अधिकारी, पुस्तकालयाध्यक्ष, सहायक अभियंता और एक अन्य के खिलाफ 300 करोड़ रूपये के ग़बन और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हल्ला बोल धरना प्रदर्शन किया था। 

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