तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ (कविता)
- [By: || 2024-01-17 13:59 IST
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ ऐतराज होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जब से
और ज़ियादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
-दुष्यंत कुमार
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