समान नागरिक संहिता लाने की तैयारी में मोदी सरकार, जाने क्या है समान नागरिक संहिता कानून

  • [By: PK Verma || 2022-07-06 12:47 IST
समान नागरिक संहिता लाने की तैयारी में मोदी सरकार, जाने क्या है समान नागरिक संहिता कानून
सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर डॉ पी के वर्मा 
नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने देश के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता कानून लाने के लिए तैयारी शुरु कर दी है। एक समान नागरिक संहिता कानून के बिल को आने वाले समय में किसी भी समय संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है। एक समान नागरिक संहिता कानून के परीक्षण के तौर पर उत्तराखंड में इसे लाने की तैयारी प्रारंभ कर दी गई है जिसके अंतर्गत उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी के लिए ड्राफ्ट निर्देश बिन्दु केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ही उपलब्ध कराये है जो इस बात की तरफ संकेत करता है कि इस कानून का ड्राफ्ट केंद्र सरकार के पास पहले से ही तैयार है। इस बाबत केंद्र सरकार के उच्चतर सूत्रों के अनुसार राज्यों में बने नागरिक संहिता के कानूनों को बाद में केंद्रीय कानूनों में समाहित कर दिया जाएगा। क्योंकि एक समानता लाने के लिए कानून का केंद्रीय होना जरूरी है। जानकारी के अनुसार कई राज्यों (खासकर भाजपा शासित प्रदेश) में इस कानून को परीक्षण के तौर पर तैयार किया जा रहा है। दरअसल केंद्र सरकार का चाहती थी कि समान नागरिक संहिता पर राष्ट्रीय विधि आयोग से रिपोर्ट ले ली जाए लेकिन विधि आयोग के 2020 में पुनर्गठन होने के बावजूद कार्यशील नहीं होने के कारण राज्य स्तर पर कमेटियां बनाई जा रही हैं। कमेटी का फॉर्मेट विधि आयोग की तरह से ही है। इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना देसाई, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज प्रमोद कोहली, पूर्व आईएएस शत्रुघ्न सिंह और दून विवि की वीसी सुरेखा डंगवाल को शामिल किया गया हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यह कमेटी अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश में भी बनाई जा सकती है। ये राज्य समान नागरिक संहिता के लिए पहले ही हामी भर चुके हैं। कमेटी के संदर्भ बिन्दु केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गए है।
 
क्या है समान नागरिक संहिता: समान नागरिक संहिता से देश में सभी नागरिकों के लिए विवाह, विवाह की उम्र, तलाक, पोषणभत्ता, उत्तराधिकार, सह-अभिभावकत्व, बच्चों की कस्टडी, विरासत, परिवारिक संपत्ति का बंटवारा, वसीयत, चैरिटी-दान आदि पर एक समान कानून हो जाएगा चाहे वे किसी भी धर्म या संप्रदाय या मत से हों। अभी ये कानून हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए अलग-अलग हैं जो उनके धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं। हिन्दुओं का कानून वेद, उपनिषद, स्मृति, न्याय के आधुनिक मत, बराबरी आदि पर आधारित हैं जबकि मुसलमानों का कानून कुरान, सुन्नाह, इज्मा और कियास पर आधारित हैं। इसी प्रकार ईसाइयों का कानून बाइबल, रूढियां, तर्क और अनुभव के आधार पर बने हैं। पारसियों के कानून का आधार उनके धार्मिक ग्रंथ जेंद एवेस्ता और रूढियां हैं। दरअसल मुस्लिम ला में बहुविवाह अर्थात 4 शादी करने की छूट है लेकिन अन्य धर्मो में एक पति एक पत्नी का नियम कड़ाई से लागू है। बांझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी हिंदू, ईसाई, पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है और आईपीसी की धारा 494 में 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है। मुस्लिम में विवाह के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है, 9 वर्ष तक की लड़की से निकाह किया जा सकता है। जबकि अन्य धर्म में यह उम्र 21 वर्ष है। वहीं पारसी आपसी सहमति से विवाह विच्छेद नहीं कर सकते। संपत्ति के कानून मुसलमानों में पुरुष के हक में झुके हैं जबकि हिन्दुओं में स्त्री को बराबर के अधिकार हैं। मुसलमानों में वसीयत भी एक तिहाई संपत्ति की की जा सकती है वह भी मौखिक। तलाक के बाद मुस्लिम महिला को सीमित समय तक ही गुजारा भत्ता दिया जाता है। इस प्रकार देखा जाये तो एक देश में कई प्रकार की नागरिक असमानताएं है। एक समान कानून बनने से विभिन्न तरह के कानूनों की समाप्ति होगी और इससे देश में करीब 20 फीसदी दीवानी मुकदमे खुद ही ख़त्म हो सकते हैं। क्योंकि सभी नागरिकों पर आईपीसी की तरह से यह कानून लागू होगा। एक समान नागरिक संहिता कानून लागु हो जाने के बाद पूरा देश एक सूत्र में बंध जायेगा। 

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